भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर, विशेष रूप से हाईवे निर्माण में एक ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट्स में सालों से चली आ रही आर्बिट्रेशन (पंचाट) की प्रक्रिया पर कड़ा प्रहार किया है। अब करोड़ों रुपये के दावों, लंबी कानूनी खींचतान और मनमाने अवॉर्ड्स का दौर समाप्त होगा। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के नए नियमों के मुताबिक, 10 करोड़ रुपये से अधिक के विवादों में अब आर्बिट्रेशन का विकल्प उपलब्ध नहीं होगा।
इस फैसले का सीधा असर हाईवे सेक्टर के बड़े ठेकेदारों और कंस्ट्रक्शन कंपनियों पर पड़ेगा। सरकार का मानना है कि इस कदम से न केवल पारदर्शिता आएगी, बल्कि सरकारी खजाने पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ को भी कम किया जा सकेगा।
क्या है नया नियम और किस पर होगा लागू?
मंत्रालय द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, हाईवे कॉन्ट्रैक्ट्स में विवाद निपटारे की व्यवस्था को पूरी तरह से री-डिजाइन किया गया है।
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सीमित दायरा: आर्बिट्रेशन की सुविधा अब केवल 10 करोड़ रुपये तक के छोटे विवादों तक सीमित रहेगी।
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विकल्प: 10 करोड़ से बड़े विवादों के लिए कंपनियों को पहले कंसिलिएशन (Conciliation) या मीडिएशन (Mediation) यानी आपसी सुलह-समझौते का रास्ता अपनाना होगा।
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अंतिम रास्ता: यदि आपसी बातचीत से समाधान नहीं निकलता, तो ठेकेदारों को सीधे सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा।
यह नियम हाईवे निर्माण के सभी प्रमुख मॉडलों— BOT-टोल, हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (HAM) और EPC (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन) पर समान रूप से लागू होगा।
कड़ा फैसला लेने की पीछे की वजह
पिछले एक दशक के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर सरकार ने पाया कि आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया में कई गंभीर खामियां थीं।
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अवास्तविक दावे: 2015 से 2025 के बीच लगभग 2600 मामलों में ठेकेदारों ने 90,000 करोड़ रुपये के दावे किए, लेकिन लंबी सुनवाई के बाद पंचाट ने केवल 30,000 करोड़ रुपये के अवॉर्ड जारी किए। यह दर्शाता है कि दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति बढ़ रही थी।
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अनुचित प्रभाव: सरकार को ऐसी शिकायतें और इनपुट मिले थे कि कुछ मामलों में अनुचित प्रभाव डालकर फैसले अपने पक्ष में कराए जा रहे थे।
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बकाया राशि का अंबार: वर्तमान में भी आर्बिट्रेशन में करीब 1 लाख करोड़ रुपये के दावे लंबित हैं, जिससे प्रोजेक्ट्स की लागत और समय दोनों बढ़ रहे हैं।
वित्त मंत्रालय की मुहर और सरकारी निगरानी
सड़क मंत्रालय का यह फैसला वित्त मंत्रालय द्वारा जून 2024 में जारी की गई उन गाइडलाइंस के अनुरूप है, जिसमें कहा गया था कि बड़े सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स में आर्बिट्रेशन को 'रूटीन' प्रक्रिया न बनाया जाए। सरकार अब उन ठेकेदारों पर भी कड़ी नजर रख रही है जो ब्लैकलिस्ट या बैन होने के बावजूद अदालतों से स्टे लेकर काम जारी रखते हैं।
प्रोजेक्ट्स की गति में आएगा सुधार
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव से हाईवे सेक्टर में एक नई कार्यसंस्कृति विकसित होगी:
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त्वरित समाधान: कोर्ट जाने के डर से ठेकेदार और विभाग आपसी समझौते (Mediation) को प्राथमिकता देंगे, जिससे विवाद जल्दी सुलझेंगे।
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फंड की बचत: कानूनी लड़ाई में खर्च होने वाले समय और पैसे की बचत होगी।
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पारदर्शिता: पंचाट के 'शॉर्टकट' बंद होने से भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होगी।